कश्ती ले जाए मुझे उस पारजो मेरा किनारा है।कश्ती का है कौनसा किनारा?बहता पानी ही उसका किनारा है।
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Meri parchai dhoondhta hoon inme
उन ऊँचाइयों से देखा हैज़िंदगी को उड़ते हुएहवाओं का रुख़ जिस तरफ़ थाउसी रुख़ बहते हुए सूरज को ढलते देखा हैडूबते क्षितिज को रंगते हुएजैसा रंग खुद का थाउसी रंग में घुलते हुए पानी को बहते देखा हैठहरे पथरों पर छलाँगे भरते हुएजिस तरफ़ उसका अंत थाउसी समंदर की तरफ़ मदमस्त बहते हुए रोशनी कोContinue reading “Meri parchai dhoondhta hoon inme”
Dhund Hai, Dhoop hai
धुँध हैकी धूप हैसाँझ हैकी रूप हैरूप हैतो ढल जाएगाख़्वाब हैतो फिर आएगामुझे मत उठानामुझे सोने दोमुझे मेरे ख़्वाबों मेंरहने दोधूप मेंधुँध में
Khwabon ka kaphila
ऐसा कौनसा ख़्वाब है जो सच्चा ना लगा ऐसा कौनसा मौक़ा है जो मुमकिन ना लगा पर सचाई और ख़्वाब में शायद नींद खुलने का फ़रक है नींद खुली और आँखें मलि आँखों के मैल के साथ सारे ख़्वाब भी धूल गए दिन की भाग दौड़ में वो मौक़ा भी खो गया हक़ीक़त बनने काContinue reading “Khwabon ka kaphila”
Social Distancing
शायद मुमकिन नहींफिर भी कोशिश कर लेता हैये दिल, समझता ही नहीं है मर्ज़ ऐसा हैकी दूरी हैदिलों की करीबी कुछ कम तो नहीं दूर होफिर भी तुम्हारा साथ हैये भी कुछ कम तो नहीं है
Bouquet of Life
ये ज़िंदगी क्या है पलों का गुलदस्ता हसीन पल तुम्हारे साथ गुज़रे लो ज़िंदगी हो गयी
Relationship beyond relation
कुछ रिश्तेअजीब हैं रस्मों से परे हैंदिलों के क़रीब हैं बड़े नायाब हैंउसकी मर्ज़ी है मिल जाए तोनसीब है
Bliss
इतना सुकून है यहाँहर दिन की दौड़ से दूरकितना सुकून होगा वहाँइन सब से परेजहां तन्हाई मेंअकेलापन नहींखामोशी में जहांउदासी नहींबस दूरदुनिया से अलगख़ुशी से भी परेखुद के आस पासख़ामोशतनहाखुश
Khali haath aaye the, Khali haath jayenge
कौनसा पिटारा लेके जाओगे क्या क्या पसंद आया है कितनी लम्बी उम्र है उसमें कितनी ज़िंदगी है समेटने में उम्र गुज़ारी है इन संदूक़ों का क्या होगा बहुत भारी हो गयी है इस भोझ का क्या होगा दुआओं का पिटारा भरना है खवायिशों का पेट कहाँ भरा है हाथ ख़ाली रहने वाले हैं जहां अगलेContinue reading “Khali haath aaye the, Khali haath jayenge”
Koshish
किसी ने की कोशिशदो कदम चलने कीउस नुक्कड़ पर फिर से मिलने कीकोई कदम पहुँचे ही नहीं किसी ने की कोशिशलिखे ख़त को पड़ने कीपन्नो पे महके अल्फ़ाज़ समझने कीकुछ ख़त लिफ़ाफ़ों से निकले नहीं किसी ने की कोशिशदबी आवाज़ को सुनने कीअनकहे लफ़्ज़ों को समझने कीकुछ शोर अनसुने ही रहे किसी को सुनाई दियाकिसीContinue reading “Koshish”